Shocking News – आपने लोगों को अपने काम पर जाने के लिए रोज़ाना ट्रेन, बस या बाइक से घंटों का सफर तय करने के बारे में तो सुना होगा। शायद आप ऐसे लोगों से भी मिले हों, जो स्टीमर या बोट से कोई बड़ी सी नदी पार कर रोज़ काम पर जाते हैं और लौट आते हैं। लेकिन अगर कोई आपसे ये कहे कि वो अपने काम पर जाने के लिए रोज़ाना करीब साढ़े तीन सौ किलोमीटर की दूरी फ्लाइट से तय करता है और फिर काम के बाद फ्लाइट से ही वापस लौटता है, तो इसे आप क्या कहेंगे? यकीनन आपके लिए इस कहानी पर आसानी से यकीन करना भी मुश्किल हो जाएगा। मगर आज हम आपको जो स्टोरी बताने जा रहे हैं, वो कुछ ऐसा ही है। (Shocking News)
कहानी एयर एशिया के असिस्टेंट मैनेजर की
ये कहानी है एयर-एशिया की असिस्टेंट मैनेजर रचेल कौर की, जो रोज़ पेनांग से कुआलालांपुर तक की दूरी फ्लाइट से ही तय करती है और काम निपटा कर शाम तक फ्लाइट से ही वापस लौट कर आती है। यानी यही उसका डेली रूटीन है।

350 किलोमीटर डेली अप डाउन करती हैं रचेल
मगर क्या रोज़ करीब 350 किलोमीटर फ्लाइट से अप-डाउन करना इतना आसान है? क्योंकि ये तो हम सब जानते हैं कि सुरक्षा कारणों से फ्लाइट में बोर्ड करने से लेकर एयरपोर्ट से बाहर निकलने तक अपने आप में काफी समय लगता है। तो रचेल कौर रोज सफर करके काम पर जाने और आने के लिए इस टाइम को भी मैनेज करती हैं।
सुबह के 4 बजे शुरू होता है उनका दिन
वो रोज सुबह करीब 4 बजे उठ जाती हैं। घंटे भर बाद वो एयरपोर्ट के लिए निकलती हैं और सुबह छह बजने से पांच मिनट पहले की फ्लाइट लेती हैं। ये फ्लाइट उन्हें पौने आठ बजे उन्हें कुआलालंपुर तक पहुंचा देती है और थोड़ी ही देर में वो काम शुरू कर देती हैं। फिर दिन भर मेहनत करने के बाद रात आठ बजे फ्लाइट से ही पेनांग वापस लौट आती हैं। ये सही है कि वो एक फ्लाइट कंपनी में ही काम करती है। जिसके चलते उन्हें फ्लाइट बोर्ड करने या डिबोर्ड करने में दूसरे मुसाफिरों के मुकाबले थोड़ी सुविधा मिलती होगी। लेकिन फिर भी रोज़ाना ऐसा करना कोई आसान काम नहीं है। तो फिर रचेल ऐसा क्यों करती हैं?
वर्क लाइफ़ बैलेंस के लिए उठाया अद्भुत कदम
10 से 12 साल के दो बच्चों की मां रचेल ने कहा है कि इस तरह से वो वर्क-लाइफ बैलेंस ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाती हैं। बजाय इस बात के कि वो अपने दफ्तर यानी कुआलालांपुर में ही अपने लिए कोई मकान किराये पर ले ले। रचेल का कहना है कि वो उन्हें ज्यादा महंगा पड़ता है। पिछले साल तक वो कुआलालंपुर में ही रहती थी और सात दिनों में एक बार घर लौटती थी। लेकिन उससे उन्हें अपनी पारिवारिक दफ्तर की जिम्मेदारियां निभाने में दिक्कत हो रही थी।