Hisab Barabar – रोज़मर्रा की मुश्किलों से दो चार कराती फिल्म हिसाब बराबर (Hisab Barabar) रिलीज हो चुकी है। मगर जैसी की उम्मीद थी, इस फिल्म को इस तरह का रिस्पांस मिलता नहीं दिख रहा। आर माधवन अपने मुस्कुराते चेहरे के साथ पूरी फिल्म में जिंदगी का संतुलन साधते नजर आते हैं, लेकिन फिल्म की स्टोरी की बिनाई और कसावट उतनी अच्छी नहीं कि वो माधवन की एक्टिंग को कॉम्पलिमेंट करे, लिहाज़ा फिल्म आधे रास्ते में ही हांफती नजर आती है।
तो ये है ‘हिसाब बराबर’ की कहानी
तो आइए शुरुआत इसकी स्टोरी की एक झलक से करते हैं। फिल्म का हीरो राधे यानी माधवन रेलवे में टीटीई है। मगर उस पर घर परिवार और खास कर अपने छोटे से बेटे की परवरिश की जिम्मेदारी अकेली आन पड़ी है। ये सबकुछ करने में कई बार राधे परेशान नजर आता है। लेकिन उसकी कुछ टिपिकल आदतें हैं, जो अक्सर समाज में हमारे इर्द गिर्द दिखने वाले बहुत से लोगों में नजर आ जाती है। मसलन राधे की आदत है, हर बात का हिसाब लिखना। और एक तरह से देखा जाए तो उसकी जिंदगी इसी हिसाब किताब को बराबर करने में निकलती है।
फिल्म में कोई ख़ास सरप्राइज एलिमेंट नहीं
निर्देशक अश्विनी धीर ने फिल्म को उसके मिज़ाज के हिसाब से हल्के फुल्के अंदाज में पिरोने की कोशिश की है। लेकिन स्टोरी में वो फ्लो नजर नहीं आती, जो होनी चाहिए। कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि फिल्म अगले पल क्या होगा, वाला कौतुहल जगा पाने में नाकाम हो जाती है और किसी भी फिल्म के लिए ये एक बेहद नकारात्मक बात है। आर माधवन ने तो अपने काम के साथ इंसाफ किया है, लेकिन लगता है मानों वो फिल्म को अकेले अपने कंधे पर ढो रहे हैं। प्रोड्यूसर ने शायद जो सोचा, वो कर नहीं पाए। मगर फिर भी इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है।