Bihar Bridge – सोशल मीडिया में अक्सर लोग मजाक में कहते सुने जाते हैं – बिहार इज नॉट फॉर बिगनर्स… यानी बिहार नौसिखियों के लिए नहीं है। आज की ये खबर पढ़ कर आपको इस जुमले पर यकीन हो जाएगा। क्या आप सोच भी सकते हैं कि जमीन के दलाल और कुछ भू-माफिया एक साथ मिलकर सिर्फ जमीन की कीमत बढ़ाने के लिए किसी नदी पर एक नकली पुल का निर्माण भी कर सकते हैं? ताकि लोगों को विकास की गलतफहमी हो जाए और जमीन की रेट बढ़ जाए? (Bihar Bridge)
ये सोचना भी अजीब है। क्योंकि आम तौर पर सड़क या पुल बनाना सरकार का काम है और हमारे देश में सरकारें भी ये काम उतनी आसानी से नहीं कर पाती हैं। वक्त लग जाता है। लेकिन बिहार में जो ना हो वो कम है।
Bihar Bridge – ऐसी अल्टीमेट ठगी का प्लॉट आम तौर पर नहीं दिखता
मामला पूर्णिया का है। जहां एक बड़े भू-भाग में जमीन की कीमत बढ़ाने के लिए कुछ भू माफियों और दलालों ने मिलकर गजब चाल चली। इन्होंने कारी कोसी नदी पर एक पुल निर्माण चालू कर दिया। ताकि लोगों को लगे कि सरकार की ओर से नदी पर पुल बनने लगा है और अब इस इलाके की तरक्की तेजी से होगी और इसी अफवाह के चलते जमीन की कीमत बढ़ जाएगी। जिससे भू माफिया और दलाल मोटी कमाई करेंगे। हो भी यही रहा था। ज्यादातर स्थानीय लोगों ने मान लिया कि पुल सरकार बना रही है और इससे उनके भाग फिर जाएंगे। लेकिन जब शासन प्रशासन को इसका पता चला, तो कहानी में ट्विस्ट आ गया।
एक न्यूज पोर्टल पर छपी इसी पुल से जुड़ी खबर देख सकते हैं-
https://thesootr.com/desh/bihar-builder
न्यूज क्रॉनिकल्स की इस दिलचस्प खबर को आप मिस नहीं कर सकते-
https://newschronicles.in/hapur-news-5825-2/
Bihar Bridge – जब झांसे में आकर सरकारी अफसरों से उलझ गए ग्रामीण
पीडब्ल्यूडी के अधिकारी जेसीबी मशीन लेकर इस नकली और गैरकानूनी पुल को मटियामेट करने कारी कोसी नदी के किनारे पर पहुंच गए। और हद देखिए कि ग्रामीणों ने ये कह कर उनका रास्ता रोक लिया कि पुल का निर्माण कार्य बिल्कुल सही है, इससे उनकी समस्याएं दूर हो जाएंगी। बेचारे ग्रामीणों को ये पता ही नहीं था कि पुल सरकार नहीं बल्कि भू-माफिया बनावा रहा है। जो ना तो कानूनन सही है और ही उसकी गुणवत्ता यानी क्वालिटी को कोई गारंटी ही है। लेकिन इसके बावजूद लोग सरकारी अधिकारियों से बहस करते रहे।
सोशल मीडिया पर पुल को लेकर विवाद का वीडियो-
https://x.com/Mukesh_Journo/status/
फिलहाल तो इस कार्रवाई पर रोक लग गई है। लेकिन सवाल ये भी उठता है कि आखिर सरकारी महकमों की जानकारी बगैर ये आधा-अधूरा पुल बन ही कैसे गया? बहरहाल, बना जैसे भी हो, लेकिन बनने के पीछे जो झूठ और फरेब की कहानी है, उसका कोई मुकाबला नहीं।