भाई, सोचो तो सही, बेंगलुरु में ये Bengaluru tunnel road project कितना बड़ा खेल चल रहा है, जो हेब्बल से सिल्कबोर्ड तक 16.745 किलोमीटर की अंडरग्राउंड सड़क बनाने का प्लान है, और लागत बताई जा रही है पूरे 17,698 करोड़ रुपये की! हम उत्तर प्रदेश वाले जानते हैं कि ऐसे बड़े प्रोजेक्ट में कितनी देरी होती है, यहां तो 50 महीने का समय दिया है, लेकिन अक्सर ये डेडलाइन मिस हो जाती हैं, जैसे हमारे यहां की सड़कें बनते-बनते सालों लग जाते हैं। BMLTA ने इसकी कड़ी आलोचना की है, कहते हैं कि फिजिबिलिटी स्टडी में ढेर सारी कमियां हैं, जो शहर की ट्रैफिक प्रॉब्लम को और उलझा सकती हैं। अपन लोग तो रोज जाम में फंसते हैं, सोचो अगर बिना सोचे-समझे ऐसे प्रोजेक्ट चले तो संसाधनों पर कितना बोझ पड़ेगा, और आम आदमी की जेब पर असर आएगा।
अरे यार, इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ये Comprehensive Mobility Plan से बिल्कुल मेल नहीं खाता, जो बेंगलुरु को 2035 तक 70% पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ले जाने का टारगेट रखता है। BMLTA की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि ये योजना न Climate Action Plan से जुड़ती है और न ही नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी से, जबकि पर्यावरण को बचाने के लिए ऐसे प्रोजेक्ट ग्रीन होने चाहिए, लेकिन यहां तो कारों को बढ़ावा मिल रहा है। हम यूपी में देखते हैं कि प्रदूषण कितना बढ़ गया है, वैसे ही वहां शहरवासियों को लंबे समय में नुकसान होगा, ट्रैफिक का बोझ और बढ़ेगा। कुल मिलाकर, विशेषज्ञ कहते हैं कि बिना ठोस प्लानिंग के ये सब सिर्फ पैसे की बर्बादी है, और अपन जैसे आम लोगों को सोचना चाहिए कि शहरों का विकास कैसे सस्टेनेबल हो।
BMLTA की रिपोर्ट ने बताया 70 प्रतिशत Public Transport पर निर्भर
बेंगलुरु का Comprehensive Mobility Plan तो 2035 तक शहर को 70 प्रतिशत Public Transport पर निर्भर बनाने का सपना देखता है, लेकिन ये Tunnel Project तो उल्टा निजी कारों और वाहनों को बढ़ावा दे रहा है, जैसे हमारे यूपी में गांव की सड़कों पर ट्रैक्टर ज्यादा चलने लगें तो जाम और बढ़ जाए। BMLTA ने साफ-साफ कह दिया है कि ऐसी योजनाएं शहर की असली गतिशीलता रणनीति से बिल्कुल अलग हैं, और अपन जैसे आम लोग जानते हैं कि पब्लिक बस-ट्रेन को मजबूत करने की बजाय कारों को प्रोत्साहन देने से ट्रैफिक जाम तो और भयानक हो जाएगा। इससे रोज की जिंदगी में कितनी परेशानी आएगी, सड़कें हमेशा व्यस्त रहेंगी, और प्रदूषण भी बढ़ेगा, जो हमारे यहां की तरह शहर को बीमार बना देगा। कुल मिलाकर, विशेषज्ञों का मानना है कि ये विचलन शहर के भविष्य को जोखिम में डाल रहा है, और हमें सोचना चाहिए कि सस्टेनेबल विकास कैसे हो।
अरे यार, BMLTA की रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि BBMP के पास इतने बड़े ट्विन ट्यूब टनल को हैंडल करने का कोई पुराना अनुभव ही नहीं है, जैसे हमारे उत्तर प्रदेश में नई ब्रिज बनाने वाले ठेकेदार बिना तजुर्बे के काम शुरू कर दें तो हादसे हो जाते हैं। नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी कहती है कि हर प्रोजेक्ट में वैकल्पिक रास्तों पर सोचना चाहिए, लेकिन यहां तो जल्दबाजी में ग्लोबल टेंडर जारी कर दिए, जो योजना की कमजोरियां सबके सामने ला रहा है। अपन लोग तो देखते हैं कि बिना तैयारी के बड़े प्रोजेक्ट कितने जोखिम भरे होते हैं, और इससे शहर के संसाधन बर्बाद हो सकते हैं। इसलिए, BMLTA सुझाव दे रहा है कि पहले अनुभव और विकल्पों को देखो, ताकि बेंगलुरु जैसा शहर हमारे यूपी के शहरों की तरह विकास के नाम पर न फंसे।
Scientific Assessment की कितनी बड़ी कमी BMLTA ने चेतावनी दी
इस Tunnel Project में Scientific Assessment की कितनी बड़ी कमी है, जैसे हमारे यूपी में नई सड़क बनाते समय बिना सर्वे के काम शुरू कर दो तो बाद में सब उल्टा पड़ जाता है, और BMLTA ने साफ कहा है कि मूल-गंतव्य सर्वेक्षण यानी ओरिजिन-डेस्टिनेशन स्टडीज बिना किए यातायात की मांग का सही अनुमान लगाना नामुमकिन है। BBMP ने इनको शुरुआती चरण का हिस्सा मानकर नजरअंदाज कर दिया, लेकिन अपन जानते हैं कि ऐसे अध्ययन ट्रैफिक डिमांड को ठीक से आंकने के लिए जरूरी हैं, वरना प्रोजेक्ट की उपयोगिता पर सवाल उठेंगे और शहरवासी अनावश्यक खर्च का बोझ उठाएंगे। इससे तो लगता है कि बिना ठोस डेटा के प्लानिंग सिर्फ कागजी है, और हमारे यहां की तरह ट्रैफिक प्रॉब्लम और बढ़ सकती हैं। कुल मिलाकर, विशेषज्ञों का कहना है कि रिसर्च बेस्ड अप्रोच न होने से ये सब स्पेकुलेटिव हो जाता है, जो शहर के विकास को रोक सकता है।
अरे यार, इसके अलावा सतह वाली सड़कों और जंक्शनों पर प्रभाव का कोई Evaluation ही नहीं किया गया, जैसे लखनऊ में नए फ्लाईओवर बनाते समय आसपास की रोड्स को चेक न करो तो जाम और भयानक हो जाता है, और टर्निंग मूवमेंट काउंट्स या जंक्शन सिमुलेशन की कमी से प्रवेश-निकास पॉइंट्स पर भीड़ बढ़ने का खतरा है। BMLTA ने चेतावनी दी कि इससे सर्फेस-लेवल कंजेशन और खराब हो सकता है, जो प्रोजेक्ट के मेन उद्देश्य को ही फेल कर देगा, और अपन जैसे आम लोग रोज की भागदौड़ में फंस जाएंगे। मेट्रो या सबअर्बन रेल जैसे अन्य इंफ्रा से टकराव को भी अनदेखा किया गया, जो पूरी योजना को अव्यवहारिक बना रहा है। इसलिए, सोचो तो सही, बिना कंपलीट स्टडी के ऐसे बड़े काम शहर को फायदे की बजाय नुकसान पहुंचाएंगे, और हमें यूपी स्टाइल में सस्टेनेबल सॉल्यूशन की तरफ देखना चाहिए।
पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक जोखिम
भाई, सोचो तो सही, इस Tunnel Project में Environmental Impact Assessment की पूरी तरह कमी है, जैसे हमारे यूपी में गंगा के किनारे कोई बड़ा निर्माण बिना पर्यावरण चेक के कर दो तो नदियां और झीलें कितनी प्रदूषित हो जाती हैं, और यहां राजकलुवे या हेब्बल लेक जैसे इलाकों पर प्रभाव को नजरअंदाज कर दिया गया। BMLTA ने बताया कि बेंगलुरु Seismic Zone II में आता है, जहां सक्रिय फॉल्ट लाइंस हैं, लेकिन कोई भूकंप जोखिम विश्लेषण नहीं किया गया, जो बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। हाइड्रोजियोलॉजिकल चिंताओं को भी छोड़ दिया, जो लंबे समय में पानी के स्रोतों को नुकसान पहुंचाएगा, और अपन जैसे आम लोग जानते हैं कि इससे शहर की प्राकृतिक संपदा खतरे में पड़ेगी। इससे निवासियों को स्वास्थ्य समस्याएं जैसे प्रदूषण से सांस की बीमारियां हो सकती हैं, इसलिए ऐसे प्रोजेक्ट में पर्यावरण को पहले रखना चाहिए, वरना विकास के नाम पर विनाश हो जाएगा।
अरे यार, भूमि अधिग्रहण की जरूरतों को भी बहुत कम करके आंका गया है, जैसे लखनऊ में मेट्रो बनाते समय जमीन लेने का हिसाब गलत हो तो कितना विवाद होता है, और यहां प्रवेश-निकास रैंप या वेंटिलेशन शाफ्ट के लिए कोई सटीक लागत अनुमान नहीं हैं। Land Acquisition की कॉस्ट को शामिल न करने से पूरा वित्तीय विश्लेषण अधूरा रह गया, जो प्रोजेक्ट को अविश्वसनीय बना रहा है। BMLTA ने नोट किया कि इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम और पर्यावरण मिटिगेशन को भी बाहर रखा गया, जिससे लगता है कि तैयारी ही नहीं की गई। अपन लोग तो देखते हैं कि बिना पूरी प्लानिंग के ऐसे काम शहर के विकास को रोक देते हैं, और पैसा बर्बाद होता है, इसलिए सोचो कि सस्टेनेबल तरीके से कैसे आगे बढ़ें।
वैकल्पिक सुझाव और सिफारिशें
BMLTA ने इस Tunnel Project की बजाय छोटी लंबाई वाली रणनीतिक Tunnel Alignments की सिफारिश की है, जो मौजूदा सड़क नेटवर्क को बेहतर कनेक्टिविटी दे सकती हैं, जैसे हमारे यूपी में छोटे-छोटे फ्लाईओवर बनाकर जाम कम करते हैं, और इससे शहर की यातायात व्यवस्था मजबूत होगी बिना ज्यादा खर्च के। उदाहरण के तौर पर, आउटर रिंग रोड पर गोरेगुंटेपाल्या जंक्शन को Signal-Free Connectivity बनाने का सुझाव दिया गया, जो ट्रैफिक को स्मूथ बना सकता है। पेरिफेरल रिंग रोड के लिए टनल कॉन्फिगरेशन पर सोचने से भूमि अधिग्रहण की लागत कम होगी, और निजी निवेश के अवसर बढ़ेंगे। अपन लोग जानते हैं कि ऐसे व्यावहारिक आईडिया लंबे समय में शहर को फायदा पहुंचाते हैं, और बेंगलुरु जैसा शहर हमारे यहां के शहरों की तरह विकास कर सकता है।
अरे यार, इसके अलावा ओल्ड मद्रास रोड को डीकोन्जेस्ट करने के लिए केआर पुरम और बेन्निगनहल्ली के बीच Signal-Free कनेक्टिविटी की बात की गई है, जैसे लखनऊ में व्यस्त रोड्स पर सिग्नल फ्री बनाने से कितना फर्क पड़ता है, और इससे ट्रैफिक का बोझ कम होगा। BMLTA ने Transit-Oriented Development नीति को ध्यान में रखकर सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने पर जोर दिया, जो शहर की समग्र गतिशीलता को सुधार सकता है। Suburban Rail Corridors से जुड़ाव बढ़ाने से, दीर्घकालिक विकास को समर्थन मिलेगा बिना अनावश्यक खर्च के। अपन जैसे आम लोगों को लगता है कि ये सुझाव रियल हैं, और सोचो तो सही, अगर इन्हें अपनाया जाए तो बेंगलुरु का ट्रैफिक हमारे यूपी स्टाइल में सस्टेनेबल तरीके से मैनेज हो सकता है।
निष्कर्ष
बेंगलुरु की tunnel road project पर BMLTA की आलोचना शहर की यातायात चुनौतियों को नए सिरे से सोचने का अवसर प्रदान करती है। मुख्य मुद्दे जैसे वैज्ञानिक मूल्यांकन की कमी, पर्यावरणीय जोखिम और योजना से असंगति से साफ है कि ऐसे प्रोजेक्ट को सार्वजनिक परिवहन पर केंद्रित रखना चाहिए। Comprehensive Mobility Plan और Climate Action Plan के अनुरूप विकल्प अपनाने से ही शहर का सतत विकास संभव है। क्या हम ऐसी योजनाओं को जारी रखें जो निजी वाहनों को बढ़ावा दें, या सार्वजनिक हित को प्राथमिकता दें? यह सवाल हर नागरिक को सोचने पर मजबूर करता है, ताकि बेंगलुरु एक बेहतर और पर्यावरण अनुकूल शहर बने।
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