नागा साधुओं की दुनिया अपने आप में काफी रहस्यमयी है। वो 1-2 डिग्री सेल्सियस से लेकर माइनस तक की ठंड में बगैर कपड़ों के आसानी से रह लेते हैं, जीते जी अपना अंतिम संस्कार कर लेते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए अपना लिंग तक तोड़ डालते हैं। लेकिन आखिर वो क्यों करते हैं ऐसा? और क्यों है नागा साधुओं की दुनिया इतनी रहस्यमयी?
तो आज हम नागा साधुओं के बारे में ऐसी ही अजीब और रहस्यमयी बातों की चर्चा करने वाले हैं। सनातन धर्म में नागा साधुओं की परंपरा सदियों से रही है। लेकिन ना तो नागा साधु बनना आसान है और ना ही हर कोई नागा साधु बन सकता है। इसके लिए कठिन परीक्षा से गुजरना होता है। फिर संत समाज और शंकराचार्य जिन्हें नागा की उपाधि देते हैं, वहीं नागा साधु कहलाता है।
नागा साधुओं की दीक्षा दो तरीके की होती है। एक दिगंबल नागा साधु और दूसरा श्री दिगंबर नागा साधु। इनमें दिगंबर नागा साधु भी बगैर कपड़ों के होते हैं, लेकिन बस लंगोट धारण करते हैं। जबकि श्री दिगंबर नागा साधुओं को लंगोट तक पहनने की इजाजत नहीं होती। ऐसे में नागा साधु बनना जितना मुश्किल है, श्री दिगंबर नागा साधु बनना उससे भी ज्यादा मुश्किल।
क्या है लिंग तोड़ लेने की परंपरा
नागा साधु ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते हैं। वैसे तो साधु सांसारिक रिश्ते नातों से दूर एकाकी जीवन ही जीते हैं। लेकिन नागा साधुओं के नियम कानून बेहद सख्त होते हैं, वो महिलाओं से दूर ही रहते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए वो अपने लिंग तोड़ लेते हैं या फिर नष्ट कर लेते हैं। जबकि कपड़े की जगह अपने शरीर पर राख लपेट कर रखते हैं। अक्सर के राख श्मशान में जलने वाले चिताओं की होती है। जो कि नागा साधुओं को सांसारिक मोह बंधन से दूर रहने की याद दिलाती रहती है।
आम तौर पर नागा साधु बनने के लिए लोग घर परिवार से दूर अकेले में कठोर तपस्या करते हैं। ये तपस्या उन्हें आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक तौर पर मजबूत बनाती है। जिसके बाद वो तीन प्रक्रियाओं से गुजरते हैं और तब जाकर उन्हें नागा की उपाधि मिलती है। सन्यास दीक्षा के लिए सबसे पहले साधुओं को अपना ही अंतिम संस्कार और पिंडदान की प्रक्रिया करनी होती है। यानी वो जीते जी खुद को मरा हुआ मान लेते हैं। कहने का मतलब ये है कि ना रहेगा जीवन और न रहेगी सांसारिक काम-वासनाएं। ये एक प्रतीकात्मक प्रक्रिया होती है। सबसे अंत में साधुओं को अपना लिंग तोड़ लेना पड़ता है, जिसके बाद उनके शरीर में किसी तरह कामेच्छा यानी यौन इच्छाओं का पैदा होना बंद हो जाता है। लेकिन आखिर एक साधु कैसे तोड़ता है अपना लिंग? नागा साधु अपनी दुनिया की इस रहस्यमयी परंपरा को गोपनीय ही रखना चाहते हैं।
श्मशान से क्या है नागाओं का रिश्ता?
नागा साधुओं को श्मशान से एक करीबी और अनकहा रिश्ता होता है। बहुत से नागा साधु श्मशान के इर्द-गिर्द रहते हैं। वो धार्मिक परंपराओं का पालन करते हैं। औघड़ साधुओं के बारे में कहा जाता है, वो तो कई बार चिता से निकाल कर मानव मांस तक का सेवन करते हैं। इसके जवाब में जानकार बताते हैं असल में ऐसा कर औघड़ साधु अपने जीवन से अच्छे-बुरे का सारा भेद खत्म कर देते हैं। वो जानते हैं कि मानव शरीर पांच तत्वों से बन है और इन्हीं पांच तत्वों में उसे विलीन हो जाना है। ऐसे में किसी भेद की कोई जरूरत ही नहीं।
अब सवाल ये है कि आखिर नागा साधुओं के जीवन का उद्देश्य क्या है? लोग नागा साधु बन कर आखिर क्या करते हैं? नागा साधुओं को भगवान शिव का उपासक माना जाता है। जिस तरह भगवान शिव भी अपने शरीर पर भभूत लपेटे, छाल पहने और जटा धारण किए हुए एक साधु के भेष में नजर आते हैं, ठीक उसी तरह उनके अनुयायी नागा साधु भी भगवान शिव का अनुकरण करते हुए वैसा ही जीवन जीने की कोशिश करते हैं।
सनातन की रक्षा के लिए बनते हैं नागा
लेकिन नागा साधुओं का असली उद्देश्य मानव कल्याण और सनातन धर्म की रक्षा है। नागा साधु लोगों की मदद और आध्यात्मिक रूप से उनका मार्ग दर्शन तो करते ही हैं, जब-जब सनातन धर्म पर कोई संकट आता है, तो वो एक योद्धा की तरह दुश्मनों से टकराते हैं। ये नागा साधुओं के योद्धा बनने की प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है कि वो बेहद कठिन जीवन जीते हैं, ताकि युद्ध जैसे किसी संकट के समय भी उन्हें ज्यादा परेशानी ना हो। तारीख गवाह है कि नागा साधुओं ने कई बार विदेशी आक्रांताओं से भी लोहा लिया है।
बात 1666 के आस-पास की है। बताते हैं कि औरंगजेब ने हरिद्वार में कुंभ पर हमला कर दिया था। तब नागा साधुओं ने औरंगजेब की सेना से लोहा लिया और उसे मार भगाया। इसी तरह तैमूर लंग सरीखे विदेशी हमलावरों से भी नागा साधुओं के टकराव का उल्लेख इतिहास में मिलता है। नागा साधु आध्यात्मिक जीवन जीने के साथ-साथ शस्त्र चालन में भी माहिर होते हैं। वो जरूरत पड़ने पर हथियार उठा सकते हैं। आपने अक्सर नागा साधुओं को भगवान शंकर के शस्त्र त्रिशूल के साथ देखा होगा।